ॐ कृपासिंधु श्रीसाईनाथाय नम: । |
आज मशहूर गीतकार शैलेंद्रजी का एक गाना सुन रही थी - उसमें से एक पंक्ती दिल को बहुत ही छू जाती है कि
मैं नदिया फिर भी मैं प्यासी - भेद ये गहरा बात जरा सी .....
कितना सच है यह की नदिया जो हम इंसानो को बारह मास पानी देकर हमारी प्यास बुझाती है , पर वो जब तक सागर से ना मिल जाए , तब तक वह प्यासी ही रहती है । इस बात को सोचते हुए मुझे मेरे साई कीं याद आ गयी कि इंसान के लिए कोई बात कितनी भी असंभव हो , पर मेरे साई के लिए बो बात "जरा सी " होती है, चुटकी बजाने जैसे आसान होती है, क्यों कि मेरे साई के पास नामुमकीन , असंभव इन शब्दों के लिए कोई जगह है ही नहीं , पर ये तभी मुनासिब होता है जब मैं साई को "मेरा" मानूं । मैं नदिया फिर भी मैं प्यासी - भेद ये गहरा बात जरा सी .....
श्रीसाईसच्चरित के दूसरे अध्याय में हेमाडपंतजी बडे प्यार से कहतें हैं कि मेरे साई की कथाओं को सुनके हर इंसान की भूख प्यास मिट जाती है , उसे दूसरे कोई भी सुख का कोई मोल नहीं लगता और वह अपनी जिंदगी में पूरी तरह से संतुष्ट हो जाता है , उसका अंतर्मन भी शांती, तृप्ती और समाधान का एहसास पाता है क्यों कि मेरे साई उनकी कथा सुननेवाले अपने भक्त को जिंदगी में सावधानी बर्तना सिखा देंतें हैं ।
अभी हमें लगेगा इस में कौनसी कठीन बात हैं ? हम तो अक्सर अपना खुद का खयाल रखतें ही है, सावधानी भी बरततें हैं - अपनी सेहत के बारे में , पढाई के बारे में, नौकरी के बारे में , कारोबार के बारे में, पैसों के बारे में , फिर यह साईबाबा और कौनसी नयी सावधानी बर्ताने सिखानेवाले है? सवाल तो अपनी जगह पर सही है ऐसे लगेगा । अब मेरे साई जिंदगी में सावधानी बरताने कैसे सिखातें हैं - यह जानने के लिए ,इस के पिछे छुपा राज जानने के लिए हमे कुछ और चीजों की तरफ भी ध्यान देना पडेगा ।
हमें अपने जिंदगी में आनेवाली मुसीबतें , कठिनाईयां क्यों आती है , यह देखना जरूरी है । हर एक मनुष्य के मन में आहार, निद्रा, भय एवं मैथुन यह चार केंद्र होते हैं। इन चारों केन्द्रों की दिशा एवं ताकत हर किसी के पूर्वजन्म के अपने कर्म के अनुसार भिन्न-भिन्न होती हैं। पूर्वजन्म से इस जन्म में लिंगदेह के साथ आने वाला ‘प्रारब्ध’ यानी इन चारों केन्द्रों की जन्मजात स्थिति।
हेमाडपंतजी हमें इस प्रारब्ध का अर्थ अध्याय ४७ में समझातें हैं ।
हम श्रीसाईसच्चरित की ४७ वे अध्याय में साँप और मेंढक की कथा पढतें हैं - यहां पर वो मेंढक याने पूर्वजन्म का चनबसाप्पा और साँप याने वीरभद्राप्पा रहते हैं , पूर्वजन्म याने पिछले जन्म के बैर के कारण वीरभद्राप्पा के खौंफ की वजह से चनबसाप्पा के मन में इतना भय पैदा होता है कि उसी भय से उसकी मौत हो जाती है । अगले जन्म में भी मेंढक बनने के बावजूद भी वीरभद्राप्पा के प्रती भय उसके मन से मिटता नहीं हैं ।
तो यह हो गया प्रारब्ध से उत्पन्न "भय " - अब जब की हमें हमारा पिछला जन्म ही मालूम नहीं होता , तो हम इस भय से सावधानी कैसे बरतें ? याने हमें हमारे प्रारब्ध से जुझने के लिए हरिकृपा की आवश्यकता होती है क्यों कि एक हरि याने परमात्मा , भगवान ही हमें ऐसी अंजान चींजों से उबार सकता है । इसिलिए संत एकनाथ महाराज जी हमें बतातें हैं - एका जनार्दनी भोग प्रारब्ध का। हरिकृपा से उसका नाश है ही।
भले ही मुझे मेरा पिछला जन्म मालूम ना हो पर मेरे साई मेरे हर जन्म से वाकिफ है । इसिलिए वो साई ही बता सकतें है अपने चहिते शामा को कि पिछले बहतर जन्मों में क्या मैंने तुम्हें कभी छुआ था ? अब यह साई ही है जो मेरे पास हरि की कृपा ला सकतें हैं क्यों कि हम माने या ना माने पर वो ही तो हरि है, असल में मानव रूप में आए हुए हरि है, भगवान है ।
अब मेरे साई इस प्रारब्ध का नाश अर्थात इन चारों केन्द्रों की आज की स्थिति की सभी कमियों का, न्यूनता का नाश और इन चारों केन्द्रों का उचित समर्थकेंद्र में परिवर्तन अपनी सहज लीला द्वारा करतें हैं । जब हम साई को अपना मान के अपनी जिंदगी की बागडोर उनके हाथ में थमा देतें हैं और उनकी कथा सुनने लगते हैं तब "मेरे " साई मुझे जिंदगी के हर मोड पर सावधानी बर्ताना सिखातें हैं ।
प्रारब्ध निर्माण होने के लिए वजह होतें हैं - चार केंद्र - आहार, निद्रा, भय एवं मैथुन ।
अब साई इन केंद्रों मे हुई विकृती यानि खामी या न्यूनता को हटाने के लिए , उसका नाश करने के लिए सावधानी बरतना हमें कैसे सिखातें हैं इस के बारे में मैंने एक आसान सा लेख हाल ही में पढा - जहां लेखक महाशय ने साईबाबा की कथा सुनने पर हमारे साईबाबा ये गहरे भेदवाली भात को जरा सी बात बनाकर कैसे हम भक्तों पर अपनी कृपा बनायें रखतें हैं इसका विवरण किया था -
http://www.newscast-pratyaksha.com/hindi/shree-sai-satcharitra-adhyay2-part13/
यह लेख पढकर मेरे साई की जरा सी दिखनेवाली बात के पिछे कितना गहरा भेद छुपा है , यह जानकर साईबाबा के प्रति बहुत जादा प्यार उमड आया और मेरे साई की रहम नजर का अर्थ समझने में आसानी हुई ।
१. आहार केंद्र- यह सिर्फ भूख का केंद्र नहीं है जो खाने से मिटती है । अन्न की ही तरह अन्य सभी प्रकार की भूख भी इसी आहार केंद्र पर निर्भर रहती हैं। लैंगिक भूख, कीर्ति की भूख, पैसे की भूख, अधिकार की भूख, सत्ता की भूख इस तरह की सभी प्रकार की भूख इसी केन्द्र पर निर्भर होती है। जितने प्रमाण में यह केन्द्र अनुचित पद्धति से कार्य करता है, उतने ही प्रमाण में झूठी भूख का प्रमाण बढ़ जाता है।
अध्याय २५ में दामूअण्णा कासार जी कथा में हम देखतें है कि उनके पास तो काफी धन है । किंतु अपने दोस्त के कहने पर उन्हें जादा धन (पैसा ) कमाने की भूख लग जाती है । अभी साई जानतें हैं कि आगे चलकर कपस के कारोबार में दामू अण्णा अगर दोस्त के कहने से शामिल हो जातें हैं , तो उनका भी दिवाला निकल सकता है । इसिलिए साईबाबा दामूअण्णा को इस झुठी पैसे की भूख से बचने के लिए सावधानी बरतने के लिए आगा कर देतें हैं खत के जरिए । फिर भी दामू अण्णा जी की पैसे की झूठी भूख उन्हें शांती से बैठने नहीं देती और वो साईबाबा को मिलने शिरडी पहुंच जातें है और बाबा को धंदे में हुए मुनाफे का हिस्सा देने की बात अपने मन में कहतें हैं । यहां भी साई दामू अण्णा ने किए हुए पैसे का लालच ना रखकर दामू अण्णा को सावधानी कैसे बरतनी है यही पाठ पढातें हैं क्यों कि दामू अण्णा ने साईबाबा को अपना माना था, अपने गुरु मानें थे।
२. निद्रा केंद्र - निद्रा केन्द्र यह केवल नींद का ही केन्द्र न होकर निद्रा केन्द्र यह ‘तृप्ति’ का केन्द्र है । इस केन्द्र की क्षमता पर ही जिस तरह शांत नींद निर्भर करती है, उसी तरह उचित आहार से तृप्ति, लालच, अतृप्ति में मर्यादा, वासनाओं के प्रति नीति का बंधन ये बातें भी निर्भर करती हैं। जिसका यह ‘तृप्ति’ केन्द्र (निद्रा केन्द्र) कम विकसित होता है वह जीव सदैव अशांत, अतृप्त रहता है। साईकथाओं द्वारा हमें प्राप्त होने वाला ‘समाधान’ (संतुष्टता) यह गुण हमारे इस निद्रा केन्द्र को पूर्ण विकसित करके हमें इस बात का अहसास करवाता है कि सच्ची तृप्ति एवं शांति किस में हैं ।
अध्याय ३५ में हम धरमसी जेठाभाई ठक्कर की कथा में पढतें है कि घर में बहुत सारा धन और सारे सुख के साधन होने के बावजूद धरमसी किस तरह झूठी गलत बातों में उलझा रहता है और अपनी जिंदगीं में शांती, तृप्ती , समाधान से परे रहता है । साईबाबा को मिलने के बाद ही साईबाबा उसे जिंदगी के इस नींद केंद्र की सावधानी क्या है इस की जानकारी देकर उस की जिंदगी की खुशियाली लौटा देतें हैं ।
३. भय केंद्र - भय केन्द्र यह है मनुष्य को उसके स्वयं की ‘कमजोरी’ की, उसकी क्षमता की, मर्यादा का एहसास करवाने वाला केन्द्र। संक्षेप में कहें तो मुझे अपनी हैसियत का एहसास करवाने के लिये यह भय केन्द्र अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। यह भय केन्द्र परमेश्वर ने मनुष्य को डराने अथवा सताने के लिये नहीं बनाया है, बल्कि मनुष्य अपनी मर्यादित क्षमता का सदैव ध्यान रख सके इसीलिये बनाया है। जिस समय मैं घमंड में आकर परमात्मा के धाक को न मानकर अपनी इच्छानुसार स्वैर व्यवहार करने लगता हूँ और अपनी ताकत का उपयोग दूसरों को तकलीफ़ देने के लिये करने लगता हूँ, तब मेरा यह भय केन्द्र विकृत हो चुका होता है।
अध्याय २२ में अमीर शक्कर की कथा हमें दिखाती है कि साई की बात न मानना या साईबाबा के वचनों का धाक न मानकर अपने घमंड में चूर होकर अपनी इच्छानुसार स्वैर वर्तन , व्यवहार करने पर कैसे मुईबतों के पहाड मुझ पर टूट पड सकतें हैं । किसी प्यासे को पानी पिलाने जैसा पुण्य कर्म भी मेरे लिए कैसी अनसोची मुसीबत पैदा कर सकता है । इसिलिए भय केंद्र से साईबाबा हमें डरातें नहीं बल्कि हमें सावधान करतें हैं कि कौनसी चीजों से हमें खतरा हो सकता है, हमारे जीवन में भय पैदा ना हो इसके लिए मेरे साईबाबा ही तत्पर है और वो ही मुझे सावधान करतें हैं ।
४. मैथुन केंद्र- मैथुन केन्द्र अर्थात् केवल लैंगिक केन्द्र नहीं बल्कि मानवी इच्छा भी है, अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिये लगने वाले सामर्थ्य को पूरा करने वाला केन्द्र। कार्य सिद्ध करने की क्षमता एवं कौशल्य इस मैथुन केन्द्र पर ही आधारित होते है।
हम जब किसी कार्य को हाथ में लेते हैं, तब उसे पूरा करने के लिये क्षमता एवं सामर्थ्य साथ ही कौशल्य भी ज़रूरी होता है। इसके लिये उनकी पूर्ति होते रहना, परमेश्वरी उर्जा का अखंडित रूप में प्रवाहित होते रहना ज़रूरी होता है।
साईकथा सुनने से हरि की मेरे भगवान की परमेश्वरी ऊर्जा को हमारे जीवन में मेरे साईनाथ प्रवाहित कराते रहते हैं। साईकथाओं के आश्रय में रहनेवाले भक्त को परमेश्वरी ऊर्जा की कभी भी कमी नहीं पड़ती और इससे उसके मैथुन केन्द्र का कार्य भी सदैव उचित रूप में होते रहता है।
इस तरह साईकथा यानी हरिकृपा हमारे मन के इन चारों केन्द्रों को उचित दिशा प्रदान करती है अर्थात् हमारे प्रारब्धभोग का नाश करती है। हमारा प्रारब्ध चाहे कितना भी बुरा क्यों न हो यानी इन चार केन्द्रों की स्थिति कैसी भी क्यों न हो, मग़र फ़िर भी साक्षात् हरिकृपा होनेवाली साईकथाओं के द्वारा हम अपने प्रारब्धभोग को दूर कर अपना जीवनविकास ज़रूर कर सकते हैं, इसी बात की गवाही हेमाडपंत हमें दे रहे हैं।
ॐ साई श्री साई जय जय साईराम ।