Friday 11 May 2018

मेरे साईनाथ - काल के भी काल होनेवाले महाकाल स्वरूप मेरे साईबाबा !

श्रीसाईसच्चरित के अध्याय ३ में हेमाडपंतजी बहुत प्यार से हमें हमारे साईनाथ की सत्ता के बारे में बतातें हैं कि - जो खुद मेरे साईनाथ मे मुझे भी और साथ ही अपने सारे बच्चों को गवाही दी है - अपनी जुबान से !

काल के भी जबड़े में से।
निजभक्त को मैं खींचकर बाहर निकाल लूँगा।
करते ही केवल मत्कथाश्रवण
(मेरी कथा का श्रवण)।
रोगनिरसन भी हो जायेगा॥
इस गवाही में यह मालूम हो जाता है कि मेरे साईबाबा की सिर्फ चराचर यानि सजीव , निर्जीव सूष्टी पर ही नहीं बल्कि काल पर भी सत्ता है। हम जानतें हैं कि काल की सत्ता तो हम सभी जीवों पर होती है, फिर भी काल के भी काल होनेवाले महाकाल स्वरूप साईनाथ हमें इस बात की गवाही दे रहे हैं कि काल के जबड़े में फँसे हुए अपने भक्त को मैं खींचकर बाहर निकाल लूँगा अर्थात उसकी रक्षा करूँगा। मृत्यु के जबड़े में फँसे हुए श्रद्धावान को छुड़ाने का सामर्थ्य केवल एकमात्र सद्गुरुतत्त्व के पास ही होता है, अन्य किसी के भी पास नहीं होता।
                                                                         
     

इसी बात का प्रमाण हेमाडपंतजी हमें अध्याय २३ में शामा के जीवन की एक कथा से देतें हैं । माधवराव देशपांडे उर्फ बाबा के लाडले शामा को सांप कांटता है और पूरे बदन में जहर फैलने लगता है । शामा को शिरडी वासी लोग उस वक्त की मान्यता अनुसार बिरोबा (यानि महादेव ) के मंदिर में ले जाना चाहतें हैं ताकि उनका जहर उतर जाए , पर शामा जाने से मना करता है। बाद में शामा के चाचा निमोणकर जी उन्हें बाबा की उदी देतें हैं , उसे भी शामा अस्विकार करतें हैं और सिर्फ अपने साई के चरणों में अनन्य भाव से शरणागती पाने जातें हैं द्वारकामाई में ।   वहां पर पहले तो साईनाथ बहुत क्रोधित होकर शामा को मशीदमाई की पगडंडी भी चढने से मना कर देतें हैं - साईनाथ स्पष्ट शब्दों में आज्ञा देतें हैं कि हे ब्राम्हिन ! चल निकल जा यहां से , नीचे उतर जा । शामा जी ब्राम्हिन थे तो बाबा उन्हें उसीसे पुकारतें हैं । शामा फिर भी वहां से नहीं हट जाता, जो होना है वो मेरा हो जाएगा , किंतु मैं मेरे बाबा के चरणों को छोडकर कहीं ओर नहीं जाऊंगा , यह होता है निजभक्त - साईनाथ का निजभक्त !

अर्थात बाद में साईबाबा का गुस्सा , उनकी आज्ञा जहर को थी , और शामा  को थी ही नहीं इस बात का पता चलता है । हेमाडपंतजी हमें इस कथा का विशेष महत्त्व बतातें हैं कि मेरे साईनाथ ने ना तो कोई मंत्र का उच्च्चारण किया नाही अन्य मांत्रिक -तांत्रिक लोगों की तरह कोई चावल उतारा कें फेंकें नहीं थे , बस्स एक मात्र मेरे साईनाथ की आज्ञा - चल निकल जा नीचे उतर- यह वाक्य ही जहर उतारने के लिए पर्याप्त था । मेरे साईनाथ तो काल के भी काल है ।  काल के भी काल होनेवाले महाकाल स्वरूप मेरे साईनाथ है - तो भला क्या काल उनके शब्दों को कभी धुतकार सकता हैं - कभी नहीं , ये कदापि मुमकीन नहीं । मेरे साईनाथ ही सत्यसंकल्प प्रभु है - उनका हर शब्द केवल सत्य ही सत्य होता है !

हेमाडपंत जी हमें  दूसरी कथा भी ऐसी बतातें हैं जो मेरे साईनाथ की काल पर सत्ता सिध्द करने के लिए पर्याप्त है ।  शामा की कथा में तो हम देखतें हैं कि साईबाबा ने एक मान्व के प्राणों की रक्षा काल के मुंह से की थी , किंतु ४७ अध्याय में हम सांप और मेंढक की कथा पढतें हैं जिस कथा में सांप के मुंह में एक मेंढक इस बुरी तरह से फंसा रहता हैं कि मानों अभी वह सांप उसको निगल जाएगा और वह मेंढक की मौत हो जाएगी । किंतु साईनाथ की आज्ञा सुनने मात्र से ही सांप वहांसे मेंढक को छोडकर भाग खडा हुआ था । यह कथा भी हमें बताती हैं कि मेरे साईनाथ की आज्ञा काल को भी सुननी ही पडती है , चाहे वो इंसान की मौत हो या चाहे किसी अन्य जीव मात्र की मौत हो , सब पर सत्त्ता चलाने वाले काल को मेरे साईनाथ के सामने सिर झुकाना ही पडता है ।

किंतु साईबाबा के शब्दों को हमें गौर से सुनना भी चाहिए - बाबा कहतें हैं कि काल के भी जबड़े में से। निजभक्त को मैं खींचकर बाहर निकाल लूँगा। हमें तो सिर्फ भक्त पता होता है - जो साईबाबा को अपना मानता है, उनकी भक्ती करता है , उनका जप करता है, उनकी पूजा करता है । किंतु साईनाथ चाहतें हैं कि उनके बच्चों का उन्पर अटूट विश्वास हो, उनपर अडिग श्रध्दा हो और इसिलिए ऐसे भक्त को साईनाथ अपना निजभक्त बतातें हैं ।

मेरे साईनाथ मेरी रक्षा करने के लिए और हमारे साईनाथ हमारी रक्षा करने के लिए सर्वथा समर्थ तो हैं ही, परन्तु यह हमारे जीवन में सच होने के लिए, ‘क्या हम साईनाथ के ‘निजभक्त’ हैं’, इस बात का हमें विचार करना आवश्यक है। शामा की कथा तो हमें समझाती है कि साईबाबा का निजभक्त कैसा अटल होता है, अपने साईनाथ के चरणों में उसकी श्रध्दा , भक्ती कैसी अविचल होती है । मेंढक की कथा हमें बताती है कि भले मेरी भक्ती की ताकद कम पड जाए तो भी मेरा साईनाथ - मुझे काल के जबडे से भी निकाल सकता है, इतनी उसकी सत्ता काल पर है ।

इस निजभक्त के बारे में अधिक सविस्तर स्वरूप से मैंने एक बहुत ही सुंदर लेख पढा - जिससे मुझे समझ में आया कि मेरे साईनाथ किसे अपना निजभक्त मानतें हैं , मुझे साईनाथ का निजभक्त बनने के लिए क्या करना चाहिए, मेरी साईनाथ के चरणों में किस तरह की भक्ती होनी चाहिए । मुझे पूरा यकीन है कि आप भी जरूर जानना चाहेंगे , तो चलिए पढतें  है- साईनाथ के निजभक्त होने का राज और प्रयास करतें हैं - हम साईनाथ के निजभक्त बन जाएं ऐसा -
http://www.newscast-pratyaksha.com/hindi/shree-sai-satcharitra-adhyay3-part13/

करते ही केवल मत्कथाश्रवण।
रोगनिरसन हो जायेगा॥

साईनाथ यहां हमें उनकी कथाओं का महत्त्व बता रहें हैं - भीमाजी पाटील की कथा में हम देखतें हैं कि नाना चांदोरकरजी ने साईनाथ के बारे में जो बातें बतायी , उससे ही भीमाजी ने शिरडी जाकर साईनाथ के दर्शन करने की ठान ली थी । हेमाडपंतजी बडी खुबी के साथ हमें यह बात विदीत करतें हैं कि भीमाजीने नाना  को खत लिखा , नाना का स्मरण यानि साईनाथ का स्मरण । वो ही शुभशकुन भी था और वो ही रोग का निरसन भी था । साईनाथ की कथा यानि साईनाथ की लीलाओं का बखान यानि साईनाथ का नाम का जाप । सिर्फ यह करने से भी रोग का निरसन हो ही जाएगा  किंतु क्या मेरे मन में उतना विश्वास है, उतना मेरे मन में साईनाथ पर भरोसा है? हम सामान्य मानव है, हमारे मन में सौ तरीके के बुरे खयाल , संशय , तर्क-कुतर्क आतें ही रहतें हैं जो हमारे विश्वास को कमजोर बनाती है । इसिलिए सिर्फ साईनाथ की ही कथा मुझे सुननी चाहिए, सिर्फ और सिर्फ मेरे साईनाथ के चरणों पर ही मुझे विश्वास रखना चाहिए, मुझे किसी भी अन्य की कथा नहीं सुननी चाहिए , मुझे मेरे मन की कथा भी नहीं सुननी चाहिए , मुझे मेरे खुद से ही जादा भरोसा मेरे साईनाथ पर रखना चाहिए , जैसे शामा ने रखा था , काका दीक्षित ने रखा था , म्हालसापती ने रखा था । तभी मेरे साईनाथ मेरे रो का निरसन करेंगे ही - १०८ % सत्य!         

1 comment:

  1. From this blog we learnt what sainath expects from us..He wants his children to have unshaven faith on him then He can do anything for his devotees...
    Thanks to pratyaksha daily newspaper for this article...
    The story mentioned in this blog is making our understanding more clear n precise...

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प्रत्यक्ष मित्र - Pratyaksha Mitra

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