Saturday 17 December 2016

मेरे साईबाबा का आचरण - आत्मनिर्भरता का सबक ।

हरि ॐ

ॐ कृपासिंधु श्री साईनाथाय नम:।

मेरे साईबाबा का आचरण - आत्मनिर्भरता का सबक ।

हाल ही में  १६ दिसंबर को हमारे पूरे भारत देश में विजयदिवस मनाया गया । १९७१ साल  में इसी दिन (१६ दिसंबर ) हमारे भारत देश  ने पाकिस्तान को हराकर इतिहास रचा था। आज ही के दिन हमारे सैनिकों ने पूर्वी पाकिस्तान को पाकिस्तान से अलग करके एक नए राष्ट्र को जन्म दिया था। आज यह नया राष्ट्र बंग्लादेश के नाम से जाना जाता है। इसी उपलक्ष्य में हर साल इस दिन को भारत में विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है।  



१९७१  के युद्ध में पाकिस्तानी सेना भारतीय फौजों के सामने सिर्फ १३ दिन ही टिक सकी। इतिहास की सबसे कम दिनों तक चलने वाली लड़ाइयों में से एक इस लड़ाई के बाद पाकिस्तान के करीब ९३ हजार सैनिकों ने आत्मसमर्पण कर दिया था।

आधुनिक सैन्य काल में इस पैमाने पर किसी फौज के आत्मसमर्पण का यह पहला मामला था। इस युद्ध में विजय के बाद पाकिस्तान की सेना ने बिना किसी शर्त के समपर्ण किया, १९७१ में हुए इस युद्ध में हमारे देश की तीनों सेनाओं ने संयुक्त ऑपरेशन चलाया था।



विजय दिन की बात चलती है , तो साथ ही में याद आता है २६ जुलाई ! हर साल २६ जुलाई को कारगिल दिन के रूप से मनाया जाता है , आज से सतरह साल पहले १९९९ में कारगिल में घुसपैठी हुई थी और हमारे जवानोंने जान की बाजी लगाकर ओपरेशन विजय में कामयाबी हासिल की थी। यह दिन हमेशा हमें आत्मनिर्भरता का पाठ उचित समय में सिखना कितना आवश्यक है इसकी याद दिलाता है।  
    
नेवीगेशन सिस्टम के लिए आत्मनिर्भरता किसी भी देश के लिए काफी मायने रखती है। एक रिपोर्ट के अनुसार देशी नेवीगेशन सिस्टम आम आदमी की जिंदगी को सुधारने के अलावा सैन्य गतिविधियों,  आंतरिक सुरक्षा और आतंकवाद-रोधी उपायों के रूप में यह सिस्टम बेहद उपयोगी होगा। खासकर १९९९ में सामने आई कारगिल जैसी घुसपैठ और सुरक्षा संबंधी चुनौतियों से इसके जरिये समय रहते निपटा जा सकेगा। यह बताया जाता हैं कि कारगिल घुसपैठ के समय भारत के पास ऐसा कोई सिस्टम मौजूद नहीं होने के कारण सीमा पार से होने वाले घुसपैठ को समय रहते नहीं जाना जा सका। बाद में यह चुनौती बढ़ने पर भारत ने अमेरिका से जीपीएस सिस्टम से मदद मुहैया कराने का अनुरोध किया गया था। हालांकि तब अमेरिका ने मदद मुहैया कराने से इनकार कर दिया था। उसके बाद से ही जीपीएस की तरह ही देशी नेविगेशन सेटेलाइट नेटवर्क के विकास पर जोर दिया गया, और अब भारत ने खुद इसे विकसित कर बड़ी कामयाबी हासिल की है । इसीके फलस्वरूप नेवीगेशन सिस्टम की आत्मनिर्भरता का महत्व उजागर हुआ और आज हमारा अपना भारतीय जीपीएस दुनिया में नाविक के नाम से जाना जाता है। प्रधानमंत्री मोदीजीने कहा कि सालों से मछुआरे और नाविक चांद-सितारों की गति से समुद्र में यात्राएं करते थे। यह उपग्रह उनको समर्पित है। 

मिसाईल मैन जिनकी पहचान है - हमारे भूतपूर्व प्रेसिडेंट ए.पी.जे. अब्दुल कलामजी ने भी हमें आत्मनिर्भरता की सींख हमेशा दी है  ।


आत्मनिर्भरता की  बात से साईबाबा के आचरण की याद आई कि कैसे हमारे सदगुरु हमें जिंदगी के जरूरी चीजोंका सबक अपने खुद के ही आचरण से देतें हैं।





श्रीसाईसच्चरित ग्रंथ में हेमाडपंतजी पहले अध्याय में हमे साईबाबा के गेहू पिसने की कथा बतातें हैं । ऐसे तो साईबाबा के कितने सारे भक्त उस वक्त शिरडी गांव में मौजूद थे, अगर बाबा किसी भक्त से गेहू पिसकर आटा बनाकर देने के लिए कहते , तो क्या कोई भक्त नहीं देता था ? किंतु मेरे साईनाथ तो पूरी दुनिया को अपने आचरण से अच्छी बातों का सबक सिखलाने के लिए हमेशा तत्पर रहतें थें , तो भला बाबा क्यों कहेंगे किसी से अपना काम करने के लिए ? इसिलिए साईबाबा ने खुद ही गेहू पिसना शुरु किया था । वैसे भी हम देखतें हैं कि साईबाबा अपनी कफनी खुद सितें थे, चाहे ५० हो या १०० लोगोंका खाना पकाना हो तो भी साईबाबा खुद दाल, चावल , सब्जी लातें थे. नमक , मरची. तेल आदी मसाला भी खुद अपने हाथोंसे खरीदकर , पिसतें भी थें ।

यानि ये अनंत कोटी ब्रम्हांडो का राजाधिराज होकर भी अपने काम खुद करने की , आत्मनिर्भरता की सींख हमें अपने बच्चोंको खुद के आचरण से देता था ।
इसी कथा से उन्होंने हमें सिखाया की चाहे सांसरिक जिंदगी हो या अध्यात्म हो हर ईंसान को आत्मनिर्भर होना कितना जरूरी है। इसी साईबाबा के आत्मनिर्भरता के पाठ के बारे में एक लेख मैंने पढा और मेरे साईबाबा के अकारण प्यार, उनकी अनगिनत कृपा  का एक नया एहसास हुआ और मेरा साई मेरे लिए खुद कितना कष्ट उठाता था यह जानकर आंखे नम हो गयी । हमारे साई की हर एक बात हमें कोई ना कोई सींख जरूर देती है । आप साईभक्ती का , साईरस का पान यह लेख पढकर करने मत भूलिएगा ।
http://www.newscast-pratyaksha.com/hindi/shree-sai-satcharitra-adhyay1-part38/

उस लेख में लेखकने मेरे साईबाबा की अनेक बातोंसे आज मुझे परिचीत करवाया और साईबाबा के चरणों में अधिक प्यार से मैं जुड गयी, शरणागत बन गयी । साईमहिमा का आनंद जितना उठायें उतना कम ही है , तो चलिए आनंद की ओर बढतें हैं ...
   
ओम साईराम

No comments:

Post a Comment

प्रत्यक्ष मित्र - Pratyaksha Mitra

Samirsinh Dattopadhye 's Official Blog