Tuesday 17 January 2017

साईबाबा के सच्चे श्रध्दावान की पहचान ।

हरि ॐ. 

                                                   ॐ कृपासिंधु श्री साईनाथाय नम: । 

मेरे सदगुरु साईनाथ, मेरे साईबाबा  के ’हाँ ’ में ’हाँ  जी’ मिलाना यही  साईबाबा के सच्चे श्रध्दावान की पहचान हो सकती है इसका पाठ हमेशा से ही श्रीसाईसच्चरित का हर एक अध्याय पढाता ही है । हेमाडपंतजी अपने खुद के आचरन से ही हमें यह सींख देतें हैं कि बाबा के ’हाँ ’ में ’हाँ  जी’ कैसे मिलाना है ।  साईबाबा की धूलभेट के तुरंत बाद ही साठे जी के मकान में गोविंद रघुनाथ दाभोलकरजी (इस श्रीसाईसच्चरित ग्रंथ के लेखक महोदय ) ने गुरु की आवश्यकता क्या ? इस विषय पर तात्यासाब नूलकर जैसे महान साईभक्त से बहस  की थी रात में और सुबह ही साईनाथजी से भेंट के उपरांत ,उन्होंने दाभोलकरजी का उपहास करके उन्हे "हेमाडपंत" नाम से संबोधन किया था ।  अर्थात सब के अंतर्यामी  साईबाबा ने दाभोलकरजी को उनके भूल का एहसास करवा दिया था, पर बाद में जिंदगी भर दाभोलकरजी इस बात को भूला नहीं पाए थे ।  मेरे सदगुरु साईबाबा ने मुझे मेरी गलती का एहसास दिलाकर जो भी नाम मुझे दिया है वो ही मेरा सच्चा नाम है , मुझे मेरे साईबाबा के ’हाँ ’ में ’हाँ  जी’ मिलाना ही है , चाहे कोई भी हालात हो । इसिलिए दाभोलकरजी ने साईबाबा की मुलाकात के बाद हेमाड्पंत यही नाम स्विकार किया , अपनी आगे की पूरी जिंदगी में ।

जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी में साईबाबा के ’हाँ ’ में ’हाँ  जी’ मिलाया वही  हेमाडपंत हमें बतातें हैं कि बाबा ने कहा कि आज ये उपासना करनी है कि तब हमें बिना जिझक, बिना कुछ सोचे बाबा को तुरन्त जी कहना ही है।  वही हेमाडपंत जी हमें खुद के आचरण से यह बात बार बार दिखलातें भी हैं कि बाबा ने कहा दफ्तर रखो तो मैंने दफ्तर रखना शुरु किया, बाबा ने ग्रंथ लिखने को कहा तो मैंने अपनी काबिलयत को बिना सोचे बाबा का कहना मानकर ग्रंथ लिखना आरंभ कर दिया, बाबा ने कहा शामा के पास जाकर १५ रुपये दक्षिणा लेकर आओ तो तुरंतही साईबाबा के चरणों की सेवा छोडकर हेमाडपंतजी शामा के घर चले गए , इतनाही नहीं बल्कि साईबाबा ने सपने में अध्याय ४० में संन्यासी रूप में आकर बताया कि आज दोपरह होली के दिन मैं तुम्हारे घर  भोजन करने आऊंगा , तो हेमाडपंतजी ने अपनी पत्नी से साईबाबा के लिए जादा खाना बनाने के लिए बेजिझक कहा भी था , ना तो रिश्तेदारोंकी परवाह की थी ना किसीका लिहाज किया था , मेरे साईबाबा ने कहा तो मेरे साईबाबा आज मेरे घर जरूर पधारेंगे भोजन के लिए - अटूट विश्वास था क्यों कि हमेशा सेही उन्होंने अपने साईबाबा के  ’हाँ ’ में ’हाँ  जी’ मिलाना ही सिखा था । 

यही बात हमें साईबाबा के सच्चे श्रध्दावानों के आचरण में भी नजर आती है।  अध्याय २३ में हम पढतें हैं कि साईबाबा ने कहा कि ‘बकरे को काटो’ तो दिक्षितजी ने तुरंत ही ‘जी’ कहा था । काका साहेब दिक्षित जैसे भक्त का नाम लिए बिना हम आगे बढ़ ही नहीं सकते, कारण उन्होंने इस ‘जी’ को अपने स्वयं के आचरण में पूरी तरह से घोल लिया था। इस तरह ‘जी’ वाला भक्त हो तब बाबा उसके लिए स्वयं विमान लेकर आते हैं और उसके अंतिम समय को मधुर बना देते हैं। नानासाहेब चांदोरकर से हमें इस ‘जी’ को सीखना चाहिए। बाबा ने ‘ज्ञान’ से पहले अवग्रह करके श्‍लोक का अर्थ समझाते ही नाना ने तुरंत ही ‘जी’ कहा। नानासाहेब स्वयं संस्कृत के सिद्ध विद्वान होकर भी बाबा के उपदेश के प्रति उनके मन में जरा सी भी शंका निर्माण नहीं हुई जब कि आज तक के सभी पाठों में अवग्रह नहीं था। यह बात उन्हें पूर्णरुप से पता थी। फिर भी बाबा के उपदेश के प्रति उनके मन में जरा सी शंका पैदा नहीं हुई, उन्होंने तुरन्त हा ‘जी’ कहकर उस बात का स्वीकार कर लिया। हम मात्र नाना द्वारा कही गई यह बात सच है या झूठ, इसी झमेले में फँस कर रह जाते हैं।

हमारी जिंदगी में हम लोग अकसर साईबाबा की भक्ति तो करतें हैं , साईबाबा के मंदिर में जातें हैं , साईबाबा के नाम की माला जपतें है पर क्या हम यह बात कभी सोचतें हैं कि क्या मैं सही माईने में मेरे साईबाबा ने बताए हुए राह पर चल रहा हूं या नहीं , क्या मेरा बर्ताव , मेरा आचरण मेरे साईबाबा को पसंद है भी या नहीं ? राधाबाई को साईबाबा ने  उपवास करने से मना किया था , साईबाबा ने ३२ वे अध्याय में खुद के गुरु की कथा बताते हुए भी यही बात दोहरायी थी कि खाली पेट कभी भी भगवान की प्राप्ती नहीं हो सकती । फिर भी मैं हर गुरुवार को साईबाबा के नाम से ही उपवास रखता हूं , क्या यह मेरी बात से मेरे साईबाबा प्रसन्न होतें होंगे या नहीं? मेरे साईबाबा ने तेंडूलकरजी की पत्नी सावित्रीबाई के साथ वैद्यकीय पाठशाला में पढकर भी जोतिष्य की भविष्य़ बाणी सुनकर परीक्षा में न बैठने का निर्णय लेनेवाले उनके लडके बाबू को समझाया था कि जोतिष्य पर विश्वास ना रखें । फिर भी हमारे काम ना होने पर हम जोतिष्यों के पास हमारा भविष्य पूछने भागतें हैं , तो क्या हमारे साईबाबा हमसे नाराज नहीं होतं होंगे कि मेरे बच्चे मेरी दिखायी राह पर चलते नहीं और मेरी ‘हाँ’ में ‘हाँ‘ मिलाने के बजाय अपनी ‘हाँ’ में ‘हाँ‘ मिलाते रहते हैं और दु:खी होते रहतें हैं ।

मेरी भी आंखे इसके बारे में एक अच्छा लेख पढने के बाद खुल गयी , शायद मेरे साईबाबा ने ही मुझे सच्चे श्रध्दावान की पहचान से वाकिफ करवाया था ।  आप सारे साईबाबा के भक्तों से मैं यह बात बांटना चाहती हूं कि आप भी जान लिजिए कि साईबाबा से कैसे जुडना है ।हमें  कैसे साईबाबा के जी में हां जी मिलाना चाहिए ।    
http://www.newscast-pratyaksha.com/hindi/shree-sai-satcharitra-adhyay2-part2/
      
बाबा को ‘जी’ कहने की बजाय स्वयं के ही ‘हाँ’ में ‘हाँ‘ मिलाते रहते हैं। स्वयं के ‘हाँ’ में ‘हाँ’ मिलाते रहने से ही हम काल के चक्र में फँस जाते हैं। बाबा को यदि हम ‘जी’ कहते तो हमें बाबा का सामीप्य प्राप्त करते हैं, जो स्वयं की ‘हाँ’ में ‘हाँ’ मिलाते रहता है, वह सदैव ‘चिन्ताग्रस्त’ रहता है और जो बाबा को ‘जी’ कहते रहता है, उसकी चिन्ता बाबा करते है उसे चिंता कभी नहीं सताती। 

चलिए फिर इस नये वर्ष की शुरुवात से ही हम अपने साईबाबा के सच्चे श्रध्दावान बनने का प्रयास करेंऔर सिर्फ हमारे साईबाबा  के ’हाँ ’ में ’हाँ  जी’ मिलाना सिखें और फिर हमारा बेडा तो हमारा साईबाबा पार लगा ही देगा - १०८% सही !

हेमाडपंतजी हमें ग्वाही देतें हैं कि
प्रयत्न करणे माझे काम । यशदाता तो मंगलधाम ।
अंती तोचि देईल आराम ।  चिंतेचा उपशम होईल ।

हरि ॐ .

7 comments:

  1. Thank you for explaining in such an easy way, Suneeta.

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  2. 'Ek Vishwas Asava Purta, Karta Harta Guru Aisa' Agar yeh vishawas hamare mann main kayam hain aur hum isse badhane ki koshish karna chahte hain, to first step yahi hain- YES kehna.... HAAN kehna...
    Ambadnya. Wonderful writeup.

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  3. Superb! Explained in a very simple and beautiful way! बस, बाबा को, "जी" करने कि देरी है, बाबा तो बैठे ही है हमारे साथ में हमारी जीवन नैया चलाने के लिये! वोही साई, वोही हमारे बापूजी!

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  4. || Hari Om || Sri Ram || Ambadnya ||

    || Jai Jagdamb Jai Durge ||

    || Hari Om ||

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