Thursday 2 February 2017

भक्तों को सच्चा बोध - साईबाबा का और उनके ऋणों का स्मरण !

हरि ॐ.

भक्तों को सच्चा बोध - साईबाबा का और उनके ऋणों का स्मरण !

श्रीसाईसच्चरित में अमीर शक्कर की कथा पढ रही थी तब एहसास हुआ की मेरे साईबाबा तो मुझे मुसीबतों से उबारने के लिए तो सदैव तत्पर रहतें ही हैं , किंतु क्या इस बात को ध्यान में रखकर मैं कभी मेरे साईबाबा को तहे  दिल से , सच्चे मन से ‘थँक्स’ कहता हूं या नहीं इस बात पर मुझे अवश्य ही गौर फर्माना चाहिए । अमीर शक्कर को जोडों की बीमारी से काफी परेशानी हो रही थी , तो साईबाबा मेरा दु:ख-दर्द जरूर मिटाएगें यह सोचकर अमीर शक्कर अपना कारोबार समेट कर शिरडी में आ जाता है और साईबाबा के दर्शन करके बीमारी का उपाय भी जान लेता है । साईबाबा ने अमीर शक्कर को नौ महीने तक चावडी में रहने के लिए सलाह दीऔर मस्जिद में आकर सामने से दर्श के लिए मना भी किया । अमीर ने काफी समय तक तो साईबाबा की बात मान ली, किंतु जब जोडों के दर्द से राहत पाने मिली तो अमीर को साईबाबा की सलाह में खोट दिखने लगा , मैं कितने दिनों से यहा पडा हूं अब मेरी बीमारी ठीक है तो मैं शिर्डी छोडके बाहर जाऊंगा । साईबाबा का शुक्रिया अदा करना तो दूर की बात , अमीर शक्कर ने तो साईबाबा की अनुमती भी ली नहीं और साईबाबा को बिना पूंछे, बिना बताए शिरडी से रात में भाग खडा हुआ । किंतु कोपरगाव की धर्मशाला में उसे और एक नयी मुसीबत ने घेरा । प्यासे को पानी पिलाने का पुण्य भी अमीर को रास नहीं आया और उसे बूढे फकीर बाबा की मौत हो गयी , जिसका गुनेहगार अमीर खुद बन सकता था । अपनी ही गलती के कारण अमीर मुसीबत में फिर एक बार घिर गया था , किंतु वो तो साईबाबा को ही दोषी मान रहा था - उलटा चोर कोतवाल को डांटे - ऐसा किस्सा बना था ।
यह कहानी से हमें पता चलता है कि मैं कितनी छोटी -मोटी गलतियाँ करता ही रहता हूं और उपर से उन गलतोयों के लिए अपने आप को दोषी न मानकर , मै अपने साईबाबा को ही दोष लगाता हू ।

साईबाबा तो हर कदम [अर मेरा साथ देने के लिए एक पांव पर खडे रहते ही है , बस्स मुझे याद रखना है कि जिस जिस पथ पर भक्त साई का वहां खडा है साई ।      
                                                                     
                                                           

हम आम इन्सान हैं, सामान्य गृहस्थाश्रमी मनुष्य हैं । हमसे छोटी-मोटी गलतियाँ होती ही रहती हैं। लेकिन क्या कभी हम यह सोचते हैं कि हमारे द्वारा की गयीं उन गलतियों के अनुपात में क्या हमें सज़ा मिलती है? जब कभी हम समय निकालकर सोचेंगे तब हमें पता चलेगा कि हमारे साईनाथ कितने क्षमाशील हैं। हमारी हर गलती के लिए यदि वे हमें सज़ा देंगे तो हमारा क्या होगा? हर कोई अपने आप से यह प्रश्‍न पूछेगा तो उसका उत्तर उसे खुद ही मिल जायेगा ।

उसमें भी मुझे केवल इस जन्म की गलतियाँ ही याद हैं और वह भी मुझे मेरी स्मरणशक्ति के अनुसार ही याद आ रही हैं। इस जन्म में याद न आने वालीं, लेकिन पिछले जन्मों में की गयी गलतियों का क्या? यह भी सोचिए कि मुझसे ग़लत हुआ है मग़र मुझे जो गलत ही नहीं लगा, उन ग़लतियों का क्या? श्रीसाईसच्चरित में ही हम चनबसाप्पा और वीरभद्राप्पा की कथा में पढतें हैं कि कैसे उनकी पिछले जन्म की गलतियो की सजा उन्हें अगले जन्म में भी जाकर भुगतनी ही पडती है ।
अब हम बाबा के क्षमाशीलता को जान सकते हैं कि ये साई अनंत क्षमाशील हैं, सचमुच उनकी क्षमा भी अनंत ही है। बाबा के द्वारा सदा से ही की जा रही इस क्षमा के लिए हम उन्हें चाहे कितना भी ‘थँक्स’ बोले तो भी वह कम ही है। वैसे तो हम बात बात में दूसरे लोंगो  को ‘सॉरी’ और ‘थँक्स’ कहना नहीं भूलते, सहज ही कहते रहते हैं। हमें यह बात जरूर सोचनी चाहिए कि जिस साईनाथ की क्षमा के कारण, करुणा के कारण हमारा जीवन सुंदर बना है, क्या उन्हें हम कभी ‘थँक्स’ कहते हैं? मुझे हमेशा मेरी पुकार पे दौड के आनेवाले मेरे साईबाबा को याद रखना चाहिए, उन्हें ‘थँक्स’ कहना चाहिए, एक बार नहीं बल्कि बार बार कहते ही रहना चाहिए । क्या सचमुच हम पर सदैव खुशी के बौछार लगानेवाले साईनाथ के ऋणों का स्मरण क्या हम रखते हैं? क्या हमें इस बात का एहसास होता है कि बाबा की क्षमा के कारण मेरे प्रारब्धभोग सौम्य हुए हैं?

दुख, तकलीफ़ में तो सभी भगवान को याद करते हैं और सुख में भूल जाते हैं। परन्तु जो नियमित रुप से यह प्रार्थना करता है उसे सुख में भी भगवान का विस्मरण नहीं होता और फिर ऐसे नित्यप्रति भगवान का स्मरण करने वाले के हिस्से में दुख आयेगा कैसे?
यहां एक कथा स्मरण हुई कि साईबाबा के एक भक्त भगवानराव कुलकर्णी ने साईबाबा को एक बार सवाल पूछा था कि बाबा आप न होने पर हम आप को कहां ढूढेंगे , कहा पा सकते है  ? तब साईबाबा मे बडा प्यारा सा जबाब दिया था कि भग्या जहां पर आनंद होगा वहां पर तुम मुझे जरूर पाओगे ।  भगवानराव बहुत ही सीधे सादे इंसान थे, उन्हें यह बात सुनकर बडा दुख हुआ कि मेरे साईबाबा सिर्फ जहां पर आनंद हैं वहीं पर ही मोजूद होंगे ।  उन्होंने फिर साईबाबा से पूछा  कि बाबा जहां पर दुख होगा वहां पर आप नहीं रहोगे क्या ? साईबाबा ने बडे प्यार से कहा अरे भग्या , जहां पर मैं हू वहां पर दुख हो ही नहीं सकता ।  

हमें भी बाबा को ‘थँक्स’ कहते रहना चाहिए और दूसरी तरफ मुझे  साईनाथ के आने वाले अनुभवों को अपने आप्तों को अपने मित्रों को सुनाते रहना चाहिए। उनका गुणगान करते ही रहना चाहिए। यह इसके साथ ही बाबा से ‘थँक्स’ कह दिया ‘धन्यवाद’ कह देनाही पूरा नहीं हुआ बल्कि ‘थँक्स’ के अनुसार वृत्ति थी हेमाडपंत के अनुसार होनी चाहिए। यह हेमाडपंतजी हमें कौनसी वृत्ती  का आचरण करने प्रेरीत करतें हैं यह जानिए -   

http://www.newscast-pratyaksha.com/hindi/shree-sai-satcharitra-adhyay2-part 3 /

जब मैं साईबाबा का, मेरे भगवान का नाम सुमिरन रोक लेता हूं तभी विपति मुझ पर टूट पडती है ।
यह बात तो संत तुलसीदासजीने सुंदर कांड में बतायी है कि साक्षात महाप्राण हनुमानजी ने  भगवान श्रीरामजी से कही है -
कह हनुमंत बिपति प्रभु साई ।जब तव सुमिरन  भजन न होई।

मनुष्य से पाप कब होता है? उत्तर बिलकुल आसान है। सद्गुरुतत्त्व का, भगवान का विस्मरण होने से ही पाप होते हैं। मेरे बाबा का स्मरण मुझे है इसका अर्थ क्या है? इसका अर्थ है- साईनाथ मेरी हर एक क्रिया को, हर एक विचार को, हर एक उच्चारण को देखते ही हैं, उनसे कुछ भी नहीं छिपा है, मेरी कृतियों की पूरी की पूरी खबर उन्हें उसी क्षण होती ही हैं, इस बात का स्मरण रखना।

बाबा के स्मरण का एहसास ही मुझे मेरे पापों से परावृत्त करता है। बाबा के स्मरण के साथ उनका ‘धाक’ भी (उनके मेरे साथ होने का आदरयुक्त भय) मेरे साथ निरंतर होता ही है और बाबा के इस धाक के कारण ही मेरा मन कोई भी पापकर्म करने से परावृत्त हो जाता है। परन्तु जिस पल बाबा का विस्मरण होता है, उसी क्षण बाबा का ‘धाक’ भी मन में नहीं रह जाता और मनुष्य पापकर्म करता है।

जिस पल अमीर शक्कर ने सोचा कि रत के अंधेरे में साईबाबा को बिना बताए , मैं छुपकर भाग जाऊंगा उसी पल उस के हाथसे सदगुरु का विस्मरण हो गया , साईबाबा का धाक मन में नहीं रहा और अमीर शक्कर के हाथों से बाबा की बात न मानने का , साईबाबा को फसाने का पाप कर्म हो गया और उसका कडवा फल स्वरूप परिणाम भी भुगतना पडा ।

हेमाडपंत दूसरे अध्याय की शुरुवात में ही हमें समझातें हैं कि -
इसीलिए साई का धन्यवाद। चाहा यथामति करूँ विशद।
होगा वह भक्तों के लिए बोधप्रद। पापोपनोद होगा।

बाबा को ‘थँक्स’ कहने में ही सच्चा ‘बोध’ है। हेमाडपंत स्वयं यह अनुभव करते हैं और हम भक्तों को भी पापमुक्ति का सच्चा मार्ग दिखाते हैं, हमारे प्रारब्धभोगों को खत्म करने की मार्ग दिखाते हैं। दर असल हेमाडपंत के माध्यम से साईनाथ ही यह सब कुछ कर रहे हैं।

साईबाबा को ‘थँक्स’ कहने से या साई का धन्यवाद करने से इंसान को दूसरे भी कई लाभ होतें हैं यह मैंने महसूस किया एक श्रीसाईसच्चरित संबंधी लेख पढकर , क्या आप जानना नहीं चाहोगे अन्य लाभों के बारे में ? तो चलिए साईबाबा को सिर्फ धन्यवाद करने से हमें क्या कुछ हासिल नहीं होता यह जानने की कोशिश करतें हैं -
http://www.newscast-pratyaksha.com/hindi/shree-sai-satcharitra-adhyay2-part4/

भक्तों को सच्चा बोध कौन सा होना चाहिए? तो ‘साईनाथ का और उनके ऋणों का  स्मरण बनाये रखना’ यही सच्चा बोध है। यह बोध किस कारण होता है? तो बाबा को ‘थँक्स’ कहने से।

हेमाडपंत इस अध्याय के आरंभ में ही साईनाथ को ‘थँक्स’ कहकर हमारे उद्धार का बड़ा ही सहज एवं आसान मार्ग हमें दिखा रहे हैं। बाबा से बात करते रहें, उन्हें अपनी हर बात बताते रहें, अपनी होने वाली हर गलती के लिए मन:पूर्वक उनसे ‘सॉरी’ कहें और साथ ही उनके उस नि:स्वार्थ प्रेम के लिए, लाड़-दुलार के लिए, उनके हम पर होने वाले ऋणों का स्मरण कर उन्हें ‘थँक्स’ भी कहें।

3 comments:

  1. परमात्मा के साथ संवाद यही सच्चा संवाद है । बाकी सब संवाद हमें चक्राकार गतीमें घुमाते रहते है
    । मांगना है तो उसी से । और धन्यवाद देना है तो उसी को । कयोंकि वह एक ही ऐसा है जो हमे अकारण चाहता है और हमेशा हमारे भले के लिए सोचता है।
    धन्यवाद सुनीतावीरा ।

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  2. Thanks for sharing such a nice story of saibaba.actually I also worship saibaba but exact way of accepting his grace was unknown to me .this story n the link newscast pratyaksha has guided me n helped me immensely to find exact way of worshipping saibaba n surrendering to his lotus feet.
    thanks ma'am ...thanks newscast pratyaksha...
    eagerly waiting for your next blog ma'am.

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  3. Hari om suneetaveera I read this saisatcharitra story of Amir Sakar its good fantasticyou have given me more inspiration to read more & write I will eager to read more Ambadnya

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प्रत्यक्ष मित्र - Pratyaksha Mitra

Samirsinh Dattopadhye 's Official Blog