Saturday 4 March 2017

हेमाडपंतजी की सींख - श्रीसाईसच्चरित कैसे सुनना ?


ॐ कृपासिंधु श्रीसाईनाथाय नम: ।
मार्च माह जैसे ही शुरु हो जाता है सारी तरफ परीक्षा का माहोल बनने लगता है , दसवी , बारहवी के बोर्ड की परीक्षा , उसके बाद में स्कूल की परीक्षा । सब मां - बाप अपने अपने बच्चों को पढाई करने के लिए बार बार चेतावनी देने लगतें हैं , कई घरों से यह आवाज कानोंपर पडती है - कितने देर से कहे जा रही हूं पढाई करो , पढाई करो और एक तुम हो , तुम सुनते हो या नहीं ?
आखिर यह सुनना क्या होता है? एक बार , दो बार , तीन बार अगर मां या पिताजी ने पढाई करने के लिए आवाज दी है , तो बच्चा सुन तो लेता ही है , उनकी आवाज , उनकी डांट उसके कानों पर सुनाई तो देती है , किंतु उस
बात को सुनकर वो अनसुनी कर जाता है, उस पर ध्यान देकर अपने आचरण में नहीं लाता याने वो बच्चा पढाई करने नहीं बैठ जाता, या बात सुनकर भी खेल-कूद में ही मगन रह जाता है या टी व्ही देख रहा है तो वो बंद करके पढाई करने नहीं बैठ जाता । 
यहां जैसे मां - पिताजी को अपेक्षा है कि बच्चा उनकी बात सुनकर अपने कृती से जबाब दे या बतला दे कि उसने उनकी बात सुनकर उस पर गौर भी फर्माया है ।

‘सुनना’ अर्थात श्रवण करना उसी प्रकार ‘सुनना’ अर्थात उसके अनुसार आचरण करना यह भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है। मैंने आवाज ‘सुनी’ इस में से सुनना यह अर्थ तो यहाँ पर है ही पर इसके साथ ही यदि किसी को हम कुछ कहते हैं, और कहने के बाद ही वह उसके अनुसार आचरण नहीं करता है तब हम उसे कहते हैं कि तुम्हें कहने पर भी तुम मेरी बात नहीं ‘सुनते’ हो इस में ‘सुनना’ भी बहुत महत्त्वपूर्ण है।

यही बात हेमाडपंतजी हमें श्रीसाईसच्चरित में सिखलातें हैं कि मेरे साईबाबा की कथाएं इस तरह पढिए और सुनिए भी की जिससे मेरे साईबाबा के शब्द तुम्हारे कानों में सदैव गूंजतें रहें , तुम्हें साईबाबा कीं सींख हमेशा याद आये । 
हमेशा हमें लगता है कि हम तो रोज श्रीसाईसच्चरित की कथा पढतें हैं याने हमें तो साईबाबा के बोल याद हैं , पर क्या यह सही मायनो में सच होता है ? कितने सारे खुद को साईबाबा के भक्त कहने वाले श्रध्दावान लोग श्रीसाईसच्चरित पढने के बावजूद भी हर गुरुवार को उपास रखतें हैं , पूरे दिन में कोई कोई तो बिलकुल अन्न -जल भी ग्रहण नहीं करतें , उपर से कहतें हैं मैंने साईबाबा के लिए उपास किया, व्रत रखा ? मुझे तो बडा अचरज होता है कि अगर मैं साईबाबा को अपना भगवान मानता हूं या अपना सदगुरु मानता हूं तो मुझे उनकी हर एक बात को मानना ही चाहिए । फिर साईबाबा ने उपास रखने से मना किया है , भूखे पेट भगवान प्राप्त नहीं होता यह सींख दी है बार बार । पहले तो राधाबाई को बतलाया था अध्याय १९ में जिनकी कथा आती है और हम पढतें हैं , क्या सच में सुनतें हैं ? मेरे साईबाबा, हमारे साईबाबा हमए क्या कह रहें हैं ?
साईबाबा को पता है बच्चे है , गलतियां तो करेगे हीं , इसिलिए साईबाबा अध्याय ३२ में खुद की कहानी बतातें हुए फिर एक बार यही सींख दोहरतें हैं - चार शिष्यों की कहानी - सदगुरु किसे प्रसन्न होते हैं , किसे अपनी पाठशाला में दाखिल करवातें हैं ?

इस बारे में मुझे एक कहानी याद आ रही है जो मेरे सदगुरु डॉक्टर अनिरूध्द जोशीजी ने बतलायी थी कि साईभक्ती आचरण में कैसे लानी चाहिए ?
द्वारकामाई पाध्ये नामकी एक साईबाबा की भक्त थी, उनकी उनके साईबाबा पर बडी श्रध्दा थी , साईबाबा के दर्शन के लिए वो अपने पती गोपीनाथशास्त्री पाध्येजी के साथ हमेशा जाती थी , वो भी पैदल चलकर । उस जमाने में रईस होने के बावजूद भी उन दोनों पती -पत्नी का भाव बहुत ही सुंदर था साईबाबा के प्रति , इसिलिए वे दोनों अपने सदगुरु के दर्शन में पैदल जाते थे , कोई बड्ड्पन नही, कोई दिखावा नही, कोई अपने पैसों का मान नहीं । इतना ही नहीं बल्कि शिरडी के नजदीक पहुंचने पर और शिरडी के सीमा के अंदर पहला कदम रखने के बाद तो वह साईबाबा को लोटांगण करते हुए मसजिद तक जातें थे, यह मिट्टी इतनी पावन है, जहां पर मेरे साईबाबा के पैर पडें हैं , इस मिट्टी का तो मुझे तिलक ही करना चाहिए , देखिए कितना सुंदर भाव अपने सदगुरु के प्रति, अपने साईबाबा के चरणों की धूल के प्रति । वो दिन भी गुरुवार था,  जब द्वारकामाई ने पहली बार श्रीसाईसच्चरित पढने लिया था ।  उस वक्त उनका गुरुवार का उपास था , व्रत था जो वह बरसों से कर रही थी और राधाबाई की कथा पढने में आयी - मेरे साईबाबा ने उपास करने से मना किया है ।  शांत मन से उन्होंने कुछ सोचा और पास में ही घर के छोटे बच्चे खेल रहे थे और चकली खा रहे थे , उनके पास जाकर चकली का एक छोटा टुकडा तोडकर मुंह में नेवला डाला और अपना उपास छोड दिया ।  आगे जाकर कभी उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी में कोई भी उपास नहीं रखा , ना उस दिन भी उपास छोडने का कोई अफसोस मनाया, ना मन में वो दुखी हो गयी ।  चाहे मुझे कोई कुछ भी कहे , लेकिन जो बात मेरे साई को पसंद नहीं वो बात मैं कभी नहीं करूंगी , क्या दूढ विश्वास था उनका अपने साईबाबा के चरणों में ।  मैं तो जानकर दंग रह गयी सच में मुझे ऐसी ही भक्ती करनी सिखनी है, मेरे साईबाबा की, मुझे ऐसे ही उनके हर इक शब्द का पालन करना है अपनी पूरी जिंदगीभर ।       
 
मेरे साईबाबा के शब्द को कैसे सुनना चाहिए इस के बारे में मैंने एक बहुत ही सुंदर लेख पढा जिस में लेखक महोदय ने बहुत ही अच्छी तरह समझाया है के साईबाबा के शब्द किस तरह सुनना चाहिए और श्रीसाईसच्चरित को सही मायने में कैसे सुनना चाहिए ?
लेखक जी कहतें हैं कि -
साईसच्चरित की कथाओं को हम कानों के साथ-साथ मन से सुनकर उसके अनुसार आचरण करते हैं इसका अर्थ यह होगा कि हमने उसे सुना। इन कथाओं के माध्यम से बाबा जो कह रहे है, वह मुझे सुनना चाहिए। उदाहरणार्थ – राधाबाई की कथा सुनते समय हमें बाबा जो श्रद्धा-सबूरी का महत्त्व बता रहे हैं, उसे सुनना चाहिए। नहीं तो राधाबाई की कथा सुनने के बाद यदि मैं भी कहता हूँ कि, ‘मैं अन्न-पानी छोड़कर बाबा से गुरुमंत्र लूँगा यह उचित नही हैं, इसका अर्थ यह हुआ कि मैंने उस कथा को सुना ही नहीं। यदि इस कथा में बाबा स्वयं श्रद्धा-सबूरी का गुरुमंत्र हर किसी को दे रहे हैं तो बाबा के मुख से मिलने वाला यह गुरुमंत्र ही नहीं क्या? यह गुरुमंत्र सुनना एवं श्रद्धा-सबूरी का पालन करना अर्थात यह कथा सुनना।

मुझे यह बात सच में बहुत ही अच्छी एवं महत्त्वपूर्ण लगी और मैंने अपने जीवन में इस तरह से श्रीसाईसच्चरित पढने की और सुनने की बत ठान ली और शुरुवात भी  की , तब जाकर जाना कि हेमाडपंतजी के ओवी का क्या मतलब  है -
सुनते ही उसे हो सावधान।
अन्य सुख तृण समान ।
भूख-प्यास का हो शमन।
संतुष्ट हो जाये अन्तर्मन। 

हमारे साईबाबा हम भक्तों के जीवन में चार तत्त्व प्रवाहित करना चाहतें हैं और मेरे "श्रीसाईसच्चरित " को सुनने  से मेरी जिंदगी में यह प्रवाहित होते भी हैं –
१)सावधानी, २)आनंद, ३)पूर्णता/परिपूर्ती, ४)समाधान/संतुष्टि

देखिए साईबाबा के एक श्रेष्ठ भक्त चोलकर जी कथा हम पढतें हैं , उन्होंने तो साईबाबा को देखा भी नहीं था । सिर्फ दासगणू जी के कीर्तन के दौरान उन्होंने साईबाबा का गुणगान सुना था , पर वो इतने प्यार से सुना था कि उससे उनके जिंदगी में साईबाबा को अपना लिया , उनपर भरोसा किया, साईबाबा के चरणों में अटूट और अडिग श्रध्दा भी रखी और सबूरी भी रखी । परिणाम तो हम ने पढा भी और जाना भी कि कैसे साईबाबा ने उनकी जिंदगी में  १)सावधानी, २)आनंद, ३)पूर्णता/परिपूर्ती, ४)समाधान/संतुष्टि इस चारों चींजो को भर दिया ।

साईबाबा के चरणों मे विश्वास रखकर चोलकर जी ने पढाई करके परीक्षा देने की सावधानी बर्ती तो परीक्षा में पास करने का आनंद  साईबाबा ने उअनके जीवन में भर दिया ।  उनकी सरकारी नौकरी पक्की हो गयी , यह पूर्णता मिली और साईबाबा के शिरडी में जाकर दर्शन करने पर साईबाबा मे स्वंय उन्हें नाम लेकर पुकारा और उन्होंने मानी हुई मन्नत और मन्नत न पूरी कर पाने पर छोडी हुई शक्कर , इन सब बातों का साईबाबा ने एहसास भी दिलाया और कितना बडा अनुग्र्ह भी किया । 

चलिए तो श्रीसाईसच्चरित कैसे पढना है और सुनना भी है यह अधिक स्वरूप से जानने की कोशिश करतें है , लेख पढकर -

  
ॐ साईराम

3 comments:

  1. The post explains it very aptly about how to read and listen Shreesaisaccharit. It nicely relates with our day to day life. Many points i liked as an eye opener.Everyone must follow what Sai is expecting from us after reading, listening and writing.

    श्री साईसचित्र इन्सान के संपुर्ण जीवन विकास के लिये परमात्मा ने भेजी हुई सौहार्द उपलब्धी है। आपने बतायी हुई न्युज कास्ट प्रत्यक्ष कि लिंक पर लेखक महोदय ने बहोत खुबसुरतिसे लिखा है। ऊनका सरल और सहजतापुर्ण लेख भक्तों को एक अलग नजरीया देता है।

    It's a great initiative of Newscast pratyksha to start an article series on such divine holy Grantha Shreesaisaccharit for guiding devotees about Saibaba's words. It's a great concept of spreading awareness of Saibaba's teaching, His principles about spiritualism, Which reaches easily to devotees Keep posting. best wishes. 

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  2. The article described the significance of listening to shrisaisatcharit n saibaba himself because saibaba n shrisaisatcharit are no different.
    Listening to his words which are mentioned everywhere in this grantha is an easiest way to get rid of sins n become pure from within.
    baba's words are the ultimate medicine which will cure all our diseases totally n completely. Bhaktas benefit just because baba has said from his own mouth n that's the only medicine.
    many thanks to newscast pratyaksha for highlighting on this aspect n guiding bhaktas tirelessly.

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  3. (Ambadnya ) Thanks for expressing importance of "shravan bhakti" and sadguru Shree Aniruddha Bapu s words as reference . Thanks a lot.

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प्रत्यक्ष मित्र - Pratyaksha Mitra

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