Sunday 20 August 2017

संत कान्होपात्रा

हरि ॐ
आज दैनिक प्रत्यक्ष में अग्रलेख पढतें हुए भक्तमाता पार्वती ॠषिकुमारों एवं शिवगणों को समझाते हुए जो बातें कही थी , उस में का एक वाक्य ने मन को छू लिया ।  भक्त माता पार्वती ने कहा था  कि मानव के मन में चण्डिकाकुल ( आदिमाता दुर्गा, दतात्रेयजी, हनुमानजी, किरातरूद्रजी, माता शिवगंगागौरी , आदिमाता का वाहन बना देवीसिंह, आदिमाता के चरणों में बालभाव में बैठा उनका पुत्र त्रिविक्रम ) पर श्रध्दा और विश्वास होता है । किंतु ’मेरा तुम पर विश्वास है’ यह केवल मुंह से बोलना पर्याप्त नहीं है, बल्कि वह तुम्हारी कृति से भी प्रगट होना चाहिए ।  यह पढकर मन गहरी सोच में डूब गया कि अगर यह बात माता पार्वती बता रही है  और वो भी ऋउषिकुमारों और शिवगणों को , तो अवश्य ही यह बात हम आम आदमियों के लिए भी बहुत महत्त्वपूर्ण ही है ।  फिर खयाल आया कि हम भगवान पर हमारा विश्वास है , हमारी श्रध्दा है ऐसे कितने जोर शोर से अपने मुंह से बोलतें हैं , किंतु क्या सचमुच में हमारा भगवान/ भगवति के चरणों पर इतना अटल विश्वास रहता है क्या? इस के बारे में हमें सोअचना आवश्यक हो जाता है ।  हम हमेशा भगवान को अपना माता -पिता, भाए-बहन , सखा कहतें हैं , वो ही एक कर्ता - धर्ता- संहर्ता है , इस बात को भी स्विकार करतें हैं ।  फिर भी छोटी-मोटी मुसिबतों से हम घिर जातें हैं , तब हमारे कदम लडखडाने लगतें हैं , भगवान के चरणॊं पर होनेवाला हमारा विश्वास कम पडने लगता है ।  हमारा मन नाना तरह की भली-बुरी आशंकाओं से दोलने लगता हैं , हमारी रूह  भय से कंपित हो उठती हैं,  हमारे मन की शांति , तृप्ति  , समाधान खो जाता है ।  यह इसिलिए घटित होता हैं क्यों कि हमारा विश्वास चट्टानों की तरह खंबीर , अडिग नहीं होता है ।  मेरा भगवान या मेरी भगवति कोई भी संकट से महान है और वह उसके बच्चे को यानि  मुझे बचाने केलिए कुछ भी कर सकतें हैं , यह विश्वास दृढ नहीं होता हैं ।  यह सोचतें हुए मन में संत कान्होपात्रा की यकायक याद आने लगी और याद आया कि यह एक ऐसी संत थी, जिनका अपने विठ्ठल भगवान पर पूरा विश्वास था और वो कितनी भी बडी मुसिबत में कभी  भी टूटा नही था । 

कौन थी यह कान्होपात्रा ? चलिए उनकी कहानी जानने की कोशिश करतें हैं -
संत कान्होपात्रा
नको देवराया अंत आता पाहू । प्राण हा सर्वथा जाऊ  पाहे ।।
हरिणीचे पाड व्याघ्रे धरियले। मजलागी जाहले तैसे देवा ।।
तुजविण ठाव न दिसे त्रिभुवनी। धावे वो जननी विठाबाई ।।
मोकलूनी आस, जाहले  उदास ।घेई कान्होपात्रेस हृदयास ।।
 

(कान्होपात्रा यह एक मराठी भाषिक संत  थी , इसिलिए उनकी अभंग रचना मराठी में पाई जाती है । ) 
     
यह संत कान्होपात्रा का अभंग बताता है कि उनका उनके भगवान पर कितना अटूट विश्वास था, कितना भरोसा था उअनका पने भगवान विठ्ठल के चरणों पर ।

संत कान्होपात्रा यह १५ वी सदीं के जमाने में  मंगलवेढा गांव में, शामा नामक गणिका (नायकीण/ वेश्या ) के घर में पैदा हुई थी । शामा यह उस वक्त की सबसे रईस गणिका (वेश्या ) थी और उनके कोख से पैदा हुई यह कान्होपात्रा इतनी अधिक सुंदर, रूपमति थी कि उसकी मां ने उसे १६ सालह की उम्र होने तक अपने घर के बाहर कदम भी रखने नहीं दिया था । शामा को यह डर था कि उसकी  इतनी सुंदर बेटी -कान्होपात्रा कहीं दूसरी जगह भाग ना जाए या फिर कोई भी उसे भगाकर ना ले जाएं । यह अपनी आयु के सोलह साल तक अपनी तीन मंझिलों वाले प्रासाद (राजमहल जैसी उंची मकान ) के बाहर कदम भी न रखी हुई  यह कान्होपात्रा , बाहर के पूरे जमाने से अनजान थी । ना तो उसने कभी विठ्ठल भगवान का नाम सुना था , ना वो जानती थी कि विठ्ठल कौन है? पर यही कान्होपात्रा जिसने एक बार भी भगवान विठ्ठल का नाम सुना नहीं था , वही कान्होपात्रा फिर भगवान विठ्ठल की श्रेष्ठ भक्त , संत कैसे बन गयी , यह बहुत ही अचरज में डालनेवाली बात हैं , ना? मानों किचड से कमल का फूल खिल गया था जैसे ! 

एक दिन कान्होपात्रा अपनी मकान के सज्जे में बैठी थी तब उसने संत नामदेवजी के अभंग सुने और उस अभंग में बताये गये विठ्ठल नाम के प्यार का बखान सुनकर , उसके मन में विठ्ठल को मिलने की आंस जाग उठी । वो अपनी दासी से विठ्ठल के बारे में पूछ्ताछ करती है ।  उसकी दासी ने बतायी हुई विठ्ठल नाम की महता सुनकर कान्होपात्रा का मन और भी तेजी से उसे मिलने के लिए व्याकुल हो उठा था और तेजी से दौडकर भगवान के चरणों में पनाह (शरण )लेना चाहता था । उसे भगवान विठ्ठल से मिलने की, उस पांडुरंग को अपनी आंखो से देखने की, उससे प्यार करनेवालों से मिलने की इच्छा पैदा हुई । यही उद्विग्न अवस्था में अपना सारा ऐश्वर्य, वैभव पिछे छोडकर कान्होपात्रा मंगलवेढा छोडकर सात कोस दूरी पर होनेवाले पंढरपूर पहुंच जाती है।  पंढरपूर इस वैकुंठ नगरी में वह भिक्षा मांगकर और पूरी पवित्रता से अपना पेट पालकर गुजारा करने लगती है ।  

पर एक दिन बिदर के बादशाह (महाराजा) कान्होपात्रा की सुंदरता के बारे में  सुनकर उसे पकडकर ले जाने के लिए अपने सैन्य को भेज देतें हैं ।  उस वक्त कान्होपात्रा दौडते हुए अपने भगवान विठ्ठल के चरणों में शरण लेने पहुंच जाती है । भगवान विठ्ठल के द्वार पर खडे रहकर वह बडी आर्त भाव से बुहार लगाती है अपने भगवान विठ्ठल की  और कहती है हे मेरे भगवन ! मेरी पुकार सुनकर आप जल्दी चलें आईये, आप मेरा अंत ना देखिए , मेरा आप के सिवा इस दुनिया में और दूसरा कोई भी नही है, आप मुझे अपने ह्रुदय से लगा लिजिए ।  उसकी वह पूर्ण  विश्वास से भरी , अंतर से भरी पुकार सुनकर उसके भगवान कैसे चुप बैठतें ? उसी वक्त कान्होपात्रा एक बिजली में रुपांतरित हो गई और उसी जगह पर तरटी नामक एक वृक्ष ( पेड) पनप उठा ।  इसिलिए उसी वृक्ष को कान्होपात्रा माना जाता है  और भगवान विठ्ठल के दर्शन करने से पहए उनके इस श्रेष्ठ भक्त कान्होपात्रा का दर्शन लेना आवश्यक माना जाता है । आज भी वही तरटी का वृक्ष  पंढरपूर में खडा है जो संत कान्होपात्रा की कहानी याद दिलाता है और आनेवाले काल में भी याद दिलाता रहेगा ।                 

हमें हमारी जीवन में अपने भगवान पर ऐसा ही अटूट विश्वास होना चाहिए इस बात का स्बक संत कान्होपात्रा हमें सिखलातीं है ।  इस पूरी दूनिया में मेरा संकट कितना भी गहरा हो, मेरी मुश्किल कितनी भी कठिन हो, मेरे जान पे बन आयी हो तभी मुझे मेरे  भगवान पर विश्वास रखना ही चाहिए , और उसके सिवा कोई दूसरा मुझे मदद कर नहीं सकता , इसीलिए सिर्फ और सिर्फ भगवान को ही मदद के लिए पुकारना चाहिए । 

भक्तमाता पार्वती ने जो बात कही कि सिर्फ अपने मुंह से भगवान पर मेरा विश्वास है यह बोलना पर्याप्त नही है तो मेरी कृति से भी वोही विश्वास प्रगट होना चाहिए ।  यह बात अपनी जिंदगी में वास्तव में जी कर कान्होपात्रा ने हमें बताया है ।  ऐसी महान संत कान्होपात्रा को मेरा शत शत नमन और ऐसा ही अटूट विश्वास भगवान के चरणों पर मैं कर सकूं इसिलिए उस भगवान को भी कोटी कोटी प्रणाम !  

 


3 comments:

  1. अंबज्ञ सुनीता वीरा. संत कान्होपात्रा कथा व देवावरील दृढ विश्वास खरंच अनुकरनिय आहे.अंबज्ञ

    ReplyDelete
  2. अंबज्ञ।
    कितनी सहजता और सुंदरता से आपने हम जैसे सामान्य जनों के भगवान या भगवती के चरणों पर रहने वाली अपूर्ण विश्वास को उजागर किया है । महान संत कान्होपात्रा का उल्लेख परम पूज्य बापूजी के मुख से प्रायः सुना था, पर उनके अंतिम समय की कहानी जानकारी आज आपके इस लेख द्वारा ही प्रथम बार मिली । अंबज्ञ ।

    ReplyDelete
  3. श्रेष्ठ संत कान्होपात्राजी की कथा के माध्यम से आपने श्रद्धा और विश्वास के मुद्दे को बड़ी ही सुन्दरता से प्रस्तुत किया है। सद्गुरु की कृपा से आप इसी तरह लिखती रहें यी
    यही माँ जगदंबा के चरणों में प्रार्थना है।

    ReplyDelete

प्रत्यक्ष मित्र - Pratyaksha Mitra

Samirsinh Dattopadhye 's Official Blog