Thursday 24 August 2017

सदगुरु साईनाथ के भक्ति का महत्त्व !

श्रीसाईसच्चरित में हेमाडपंत अपने खुद के अनुभव से बताते हैं कि अगर कोई गुरु के रहते हुए  भी कोई सामान्य मानव के जीवन में मुसीबतें आने लगती हैं , तो उस इंसान को गुरु की आवश्यकता समझ में नहीं आती ।  हेमाडपंत बिना कुछ छुपाए, अपने स्वंय के अनुभव से बतातें हैं कि उनके खुद के मन में सदगुरु के भक्ति का महत्त्व समझ में नहीं आया था पहली बार । हेमाडपंतजी बतातें हैं कि उनके एक दोस्त के इकलौते बच्चे की लोनावला जैसे शुध्द हवा के स्थान में बिना किसी लंबी बीमारी के बिना यकायक मौत हो जातीं हैं, जबकि उस वक्त उसके पास उअसके गुरु बैठे हुए थे । तो यह देखकर हेमाडपंत का जी विचलित हो गया कि अगर गुरु के होते हुए भी संकट आ सकतें है, तो गुरू को मानने की क्या आवश्यकता है? अगर अपने नसीब में जो होनी लिखी है , वो होकर ही रहने वाली है और गुरु भी अगर उसे बदल नहीं सकतें हैं तो गुरु के होने न होने से कुछ फरक नहीं पडता ऐसा उन्होंने अपना विचार कर लिया था , जो गलत था , किंतु उन्हें उसका एहसास तब नहीं हुआ था ।
हम भी देखतें हैं कि आम तौर पर हमारे मन में भी गुरु के बारे में बहुत सारी गलतफहमियां होती है , जैसे हेमाडपंतजी के मन में थी  ।  तब मान लो अगर हमें भी साईबाबा की भक्ति के बारे में , साईबाबा के भक्तों पर होनेवाली रहम नजर , उनकी कृपा के बारे में मालूम नहीं होता और कोई साई भक्त हमें बताता है कि मेरे साईबाबा इतने महान है, वो इतने कृपालु है, दयालू है , तो क्या हम आसानी से मान जातें हैं ? बहुत बार हमें यही लगता है कि हम किसी का बौरा नहीं सोचते, बुरा नहीं करतें , हम हमारा काम इमानदारी से, पूरी वफा से करतें हैं फिर हमें सदगुरु की जीवन में क्या आवश्यकता है ?
                                                                           


श्रीसाईसच्चरित में हम शेवडे वकिल की कहानी में पढते है कि सपटणेकर नाम के उनके एक दोस्त थे , उन्हें शेवडे ने वकिली की परीक्षा देते समय अपने विद्यार्थी दशा में साईबाबा की भक्ति के बारे में , साईबाबा की महानता के बारे में बताया था किंतु सपटणेकर ने नहीं माना , बाद में कितने साल गुजर गए, उनकी शादी हो गयी, और फिर इकलौता बेटा कंठरोग से गुजर गया और उनका चित्त अस्थिर हो गया और ऐसी स्थिती में उन्हें अपने दोस्त शेवडे वकिली ने बतायी बात याद आती है और वह शिरडी जाते है।  किम्तु जब तक उनके मन में सदगुरु साईनाथ के प्रति होनेवाला संदेह, झूठी गलतफहमियां दूर नहीं होती, साईनाथ उन्हें अपनी शरण में नहीं लेते ।  वैसे ही गुजरात के खेडा जिले के ब्राम्हण मेघा की कहानी बतलाती है कि अपने गुरु साठे ने बताया इसिलिए मेघा जाने के लिए बहुत मुश्किल से तैय्यार हो जाता है , पर उसके मन में साईबाबा के प्रति होनेवाला संदेह मित नहीं जाता , साईनाथ उसेअपने करीब भी आने नही देते, प्रलय रूद्र के समान  भयावह रूप धारण करतें हैं ।बाद में मेघा जब अपनी  गलती का एहसास होने के बाद वापिस शिरडी जाता है, तब उसे सच के बारे में पता हो जाता   है और वह साईबाबा को अपना गुरु मान लेता है । 

इस के बारे में हाल हि में एक लेख पढा जो सदगुरु के भक्ति का महत्त्व सुंदरता से वर्णन करता है -
http://www.newscast-pratyaksha.com/hindi/shree-sai-satcharitra-adhyay2-part35/

यहां पर लेखक महोदयजी बता रहें है कि कर्म का अटल सिद्धान्त जब चुक नहीं सकता है, तो फिर सद्गुरु की क्या आवश्यकता? इस प्रकार के प्रश्‍न हमारे मन में भी उठते ही हैं। परन्तु यहीं पर हमें ध्यान देना चाहिए कि कर्म के अटल सिद्धान्त के अनुसार जो भोग मेरे हिस्से में आते हैं, उन भोगों की शुरुआत होते ही हमारे सहनशक्ति के अनुसार उचित कर्म करवा कर पुण्य का, भक्ति का संचय बढ़ाना, यह काम केवल सद्गुरु ही कर सकते हैं। प्रारब्धभोग की तीव्रता को कम करना, उसे सहन करने की शक्ति प्रदान करना और उस भोग से पुन: बुरे प्रारब्ध का जन्म न हो और साथ ही उचित पुरुषार्थ करवाकर भक्ति की जमापूँजी बढ़ाना, यह कार्य केवल सद्गुरु ही कर सकते हैं।

वैसे ही एक जगह से दूसरी जगह अगर मुझे प्रवास करना है और मै भक्ति मार्ग पर हू, सदगुर साई के चरणों में शरण हूं तब साईनाथ ही मेरे पूरे प्रवास के लिए जिम्मेदारी अपने सर पे उठा लेतें हैं  । ३३वे अध्याय में नाना चांदोरकरजी के घर उनकी बेटी की डिलिव्हरी आसानी से नही होती तब वह साईनाथ को पूरे मन से पुकारने लगतें हैं , तब साई उनके बेटी के लिए उदी और "आरती साईबाबा " यह आरती देकर रामगीर बुवा को भेजतें हैं ।  रामगीर बुवा के प्रवास के लिए पैसे की तजवीज भी साईनाथ ही करतें हैं , रास्तें में देर ना हो इसिलिए खुद तांगेवाला बनकर आतें हैं और गुड और पापडी खाने देकर खाने का भी इंतजाम कर देतें हैं ।
 
दूसरी ओर अमीर शक्कर की कहानी में जब वह साईबाबा की बात न मानके, उनसे  जाने के लिए अनुमति लिए बिना रात में अहमदनगर भाग जाता है और फिर कैसी भयावह परिस्थिती  में फंस जाता हैं ।  पानी पिलाने जैसा पुण्य़ कर्म भी जान लेनेवाला गुनाह बन जाता है । 

सदगुरु हमारी जीवन नौका को बिना पानी में डूबे पैल तीर में पहुंचा देतें हैं , बीच में मंझदार में कभी नही छोडतें , इसिलिए मुझे सदगुरु साईनाथ की भक्ति दिल-दिमाग सेकरनी चाहिए ।    

         

1 comment:

  1. Sunita, beautifully explained the importance of Sadguru in our life. References from Saisatcharitra made it more clear. Thnx

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प्रत्यक्ष मित्र - Pratyaksha Mitra

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